Friday 31 July 2015

कब-कब लगता है कुंभ मेला



कुंभ का आयोजन प्रत्येक बारह साल में चार बार किया जाता है यानी मेला हर तीन साल में एक बार चार अलग-अलग स्‍थानों पर लगता है। अर्द्धकुंभ मेला प्रत्येक छह साल में हरिद्वार और प्रयाग में लगता है जबकि पूर्णकुंभ हर बारह साल बाद केवल प्रयाग में ही लगता है।




इलाहाबाद का उल्लेख भारत के धार्मिक ग्रन्थों वेद, पुराण, रामायण और महाभारत में भी मिलता है। गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का यहाँ संगम होता है, इसलिए हिन्दुओं के लिए इस शहर का विशेष महत्त्व है। बारह पूर्ण कुंभ मेलों के बाद महाकुंभ मेला भी हर 144 साल बाद केवल इलाहाबाद में ही लगता है।


ज्योतिष महत्व

कुंभ मेला और ग्रहों का आपस में गहरा संबंध है। दरअसल, कुंभ का मेला तभी आयोजित होता है जबकि ग्रहों की वैसी ही स्थिति निर्मित हो रही हो जैसी अमृत छलकने के दौरान हुई थी। मान्यता है कि बूंद गिरने के दौरान अमृत और अमृत कलश की रक्षा करने में सूर्य, चंद्र, गुरु और शनि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चंद्र ने कलश की प्रसवण होने से, गुरु ने अपहरण होने और शनि ने देवेंद्र के भय से रक्षा की।




सूर्य ने अमृत कलश को फूटने से बचाया। इसीलिए पुराणिकों और ज्योतिषियों के अनुसार जिस वर्ष जिस राशि में सूर्य, चंद्र और बृहस्पति या शनि का संयोग होता है उसी वर्ष उसी राशि के योग में जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी वहाँ कुंभ पर्व का आयोजन होता है।

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