Friday 31 July 2015

तिमला : पत्तों से लेकर फल तक सब उपयोगी




     तिमला या तिमिल। क्या आपने कभी खाया है इसका कच्चा या पक्का हुआ फल। अगर आपने पहाड़ों में कुछ भी दिन गुजारे होंगे तो जरूर इसके स्वाद से वाकिफ होंगे। मेरे घर के पास में तिमला के दो पेड़ थे। एक था जिस पर जड़ से लेकर आगे टहनी तक खूब सारे तिमला लगते थे। कई हम कच्चे ही खा जाते थे। इनकी सब्जी भी बन जाती थी। जब यह पक जाता था तो इसका स्वाद लाजवाब होता था। दूसरे पेड़ के तिमला, उनमें तो अक्सर कीड़ा ही लगा रहता था। इसलिए मैं कहता हूं कि तिमला दो तरह के होते हैं। असल में कुछ स्थानों या कुछ पेड़ों के फल पकते नहीं हैं और यदि वे पकते हैं तो उनके अंदर स्वादिष्ट रसीला पदार्थ नहीं बल्कि सूखा हुआ पदार्थ होता है जिसमें कीड़े लगे होते हैं। मैंने जिस दूसरे तिमला का जिक्र किया है वह इसी श्रेणी में आता है वैसे वनस्पति विज्ञानियों ने अब तक इसकी कुल पांच प्रजातियों का पता किया है।
   चलो अब आपको तिमला से अवगत करा दूं। पहाड़ों में इसे तिमला, तिमिल, ति​मली, तिरमल आदि नामों से जाना जाता है। तिमला का वान​स्पतिक नाम फाइकस आरिकुलाटा है। यह मोरासी प्रजाति का फल है, जिसमें गूलर भी शामिल है। तिमला मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, नेपाल और भू​टान में होता है। तिमला का पेड़ मध्यम आकार का होता है जिसमें जड़ से कुछ दूरी के बाद ही टहनियां निकलनी शुरू हो जाती हैं। इसके पत्ते काफी बड़े होते हैं। इस वजह से तिमला को अंग्रेजी में 'एलीफेंट इयर फिग' कहा जाता है। इसके इन पत्तों को, विशेषकर सर्दियों के समय में जब वे कोमल होते हैं, तब चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी पत्तियां काफी पौष्टिक होती हैं और इसलिए इन्हें दूध देने वाले पशुओं को खिलाया जाता है। कीड़े भी इसके पत्तों को काफी पसंद करते हैं। पहाड़ों में लंबे समय तक तिमला के साफ पत्तों से पत्तल बनायी जाती थी। अब भले ही शादी या अन्य किसी कार्य में 'माल़ू' के पत्तों से बने पत्तलों या फिर से प्लास्टिक या अन्य सामग्री से बने पत्तलों का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन एक समय था जबकि पत्तल सिर्फ तिमला के पत्तों के बनाये जाते थे। इसके पत्तों को शुद्ध माना जाता है और इसलिए किसी भी तरह के धार्मिक कार्य में इनका उपयोग किया जाता है। अब भी धार्मिक कार्यों से जुड़े कई ब्राह्मण कम से कम पूजा में तिमला के पत्तों और उनसे बनी 'पुड़की' (कटोरीनुमा आकार) का उपयोग करना पसंद करते हैं।
    अब बात करते हैं तिमला के फल की। कहा जाता है कि इसमें फल नहीं आता लेकिन कुछ वनस्पति विज्ञानियों का मानना है कि इसका जो फल होता है असल में वह इसका फूल है। यह ऐसा फूल है जो चारों तरफ से बंद रहता था लेकिन इसके अंदर बीज होते हैं तथा कुछ छोटे कीट इसके अंदर जाकर परागण संपन्न करवाने और बीजों को पकाने में मदद करते हैं। तिमला के फल इसकी जड़ से ही लगना शुरू हो जाते हैं और हर टहनी पर लगे रहते हैं। । कई बार तो पेड़ तिमला से इतना लकदक बन जाता है कि सिर्फ इसके पत्ते और फल ही दिखायी देते हैं। इसका फल पहले हरा होता है जबकि पकने के बाद यह लाल या भूरा हो जाता है। इसके कच्चे फल की सब्जी बनती है। सब्जी बनाने लिये छोटे छोटे तिमलों का उपयोग किया जाता है। इनको दो हिस्सों में काटकर छांछ में भिगाने के लिये रख दो जिससे इससे निकलने वाला सफेद रस (चोप) पूरी तरह से निकल जाता है। इसके बाद उन्हें अच्छी तरह से साफ करके सब्जी बनायी जा सकती है। आप इसकी सूखी सब्जी बना सकते हैं।
    तिमला जब पक जाता है तो इसके अंदर का गूदा बहुत स्वादिष्ट होता है। इसमें काफी मात्रा में कैल्सियम पाया जाता है। इसमें कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, फाइबर तथा कैल्सियम, मैग्निसियम, पो​टेसियम और फास्फोरस जैसे खनिज विद्यमान होते हैं। पक्के हुए फल में ग्लूकोज, फू्क्टोज और सुक्रोज पाया जाता है। इसमें जितना अधिक फाइबर होता है उतना किसी अन्य फल में नहीं पाया जाता है। इसमें कई ऐसे पोषक तत्व होते हैं जिनकी एक इंसान को हर दिन जरूरत पड़ती है। इस फल के खाने से कई बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है। पेट और मूत्र संबंधी रोगों तथा गले की खराश और खांसी के लिये इसे उपयोगी माना जाता है। इसे शरीर से जहरीले पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद मिलती है। 

No comments:

Post a Comment