Golu devta History uttranchal




रानी ने सिलबट्टे को जन्म दिया है


न्यास देवता गोलू देवता या श्री ग्वेल ज्यू बाला गोरिया, गौर भैरव या ग्वेल देवता के रूप में प्रसिद्व है। इनके मंदिर चम्पावत, चितई  (अल्मोड़ा) तथा घोड़ाखाल (नैनीताल) में है। इनकी कथा कुछ इस प्रकार बतायी जाती है।

जनश्रुतियों के अनुसार चम्पावत में कत्यूरी व बंशीराजा झालूराई का राज था। इनकी सात रानियां थी लेकिन वे नि:सन्तान थे। राजा ने भैरव पूजा का आयोजन किया। भगवान भैरव ने स्वप्न में कहा कि मैं तुम्हारे यहां रानी से जन्म लूंगा। 


एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गए। उन्हें प्यास लगी। दूर एक तालाब देखकर राजा ने ज्यों ही पानी को छुआ उन्हें एक नारी स्वर सुनाई दिया, 
'यह तालाब मेरा है। तुम बिना मेरी अनुमति के इसका जल नहीं पी सकते।' 
राजा ने उस नारी को अपना परिचय देते हुए कहा- मैं गढ़ी चम्पावत का राजा हूं। मैं आपका परिचय जानना चाहता हूं। तब उस नारी ने कहा- मैं पंच देव देवताओं की बहन कलिंगा हूं। राजा ने उसके साथ शादी की।


रानी कलिंगा गर्भवती हुई। राजा प्रसन्न हुआ पर उसकी बाकी सात रानियों  को जलन हुई। रानी कलिंगा ने बालक को जन्म दिया पर सातों रानियों सिल बटटे को रानी कलिंगा को दिखाकर कहा कि तुमने उसे जन्म दिया है। बालक को एक लोहे के संदूक में लिटाकर काली नदी में बहा दिया। वह संदूक गोरीघाट में पहुंचा। गोरीघाट पर भाना नाम के मछुवारे के जाल में वह संदूक फँस गया। मछुवारा नि:संतान था, इसलिए उसने बालक को भगवान का प्रसाद मान कर पाल लिया।


एक दिन बालक ने अपने असली माँ-बाप को सपने में देखा। उसने सपने की बात की सच्चाई का पता लगाने का निश्चय किया।



एक दिन उस बालक ने अपने पालक पिता से कहा कि मुझे एक घोड़ा चाहये। निर्धन मछुवारा कहाँ से घोड़ा ला पाता। उसने एक बढ़ई से कहकर अपने पुत्र का मन रखने के लिए काठ का घोड़ा बनवा दिया। बालक चमत्कारी था।  उसने उस काठ के घोड़े में प्राण डाल दिये और फिर वह उस घोड़े में बैठकर दूर-दूर तक घूमने जाने लगा।



एक बार घूमते-घूमते वह राजा झालूराई की राजधारी धूमाकोट में पहुँचा।  घोड़े को एक जलाशय के पास बांधकर सुस्ताने लगा। वह जलाशय रानियों का स्नानागार भी था। सातों रानियां आपस में बातचीत कर रही थीं और रानी कलिंगा के साथ किए गए अपने कुकृत्यों का बखान कर रहीं थी कि बालक को मारने में किसने कितना सहयोग दिया और कलिंगा को सिलबट्टा दिखाने तक का पूरा हाल एक दूसरे को बढ़ चढ़ कर सुना रही थी। उनकी बात सुनकर, बालक को अपना सपना सच लगने लगा। वह अपने काठ के घोड़े को लेकर जलाशय के पास गया और रानियों से कहने लगा, 

'पीछे हटिये- पीछे हटिये, मेरे घोड़े को पानी पीना है।'
सातों रानियां उसकी बेवकूफी भरी बातों पर हँसने लगी और बोली, 
'कैसे  बेवकूफ हो। कहीं काठ का घोड़ा पानी भी पी सकता है।'
बालक ने तुरन्त पूछा, 
'क्या कोई स्त्री पत्थर (सिल-बट्टे) को जन्म दे सकती है?'
सभी सातों रानियों डर गयी और राजमहल जा कर राजा से उस बालक की अभ्रदता की झूठी शिकायतें करने लगी। राजा ने बालक को पकड़वा कर पूछा,  
'यह क्या पागलपन है तुम एक काठ के घोड़े को कैसे पानी पिला सकते हो?'
बालक ने उत्तर दिया, 
'महाराज यदि आपकी रानी सिलबट्टा (पत्थर) पैदा कर सकती है, तो यह काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है।'
उसके बाद उसने अपने जन्म की घटनाओं का पूरा वर्णन राजा के सामने किया और कहा,  
'न केवल मेरी मां कलिंगा के साथ अन्याय हुआ है पर महराज आप भी ठगे गए हैं।'

राजा ने सातों रानियों को बंदीगृह में डाल देने की आज्ञा दी। सातों रानियां रानी कलिंगा से अपने किए की क्षमा मांगने लगी और रोने गिड़गिड़ाने लगीं। तब उस बालक ने अपने पिता को समझाकर उन्हें माफ कर देने का अनुरोध किया। राजा ने उन्हें दासियों की भाँति जीवन-यापन करने के लिए छोड़ दिया।


कहा जाता है कि यही बालक बड़ा होकर ग्वेल, गोलू बाला, गोरिया, तथा गौर -भैरव नाम से प्रसिद्व हुआ है। ग्वेल नाम इसलिए पड़ा कि उन्होंने अपने राज्य में जनता की एक रक्षक के रूप में रक्षा की। आप गोरी घाट में एक मछुवारे को संदूक में मिले, इसलिए बाला गोरिया कहलाए। भैरव रूप में इन्हें शक्तियाँ प्राप्त थी। आप गोरे थे इसलिए इन्हें गौर भैरव भी कहा गया। 

1 comment: