Tuesday 6 May 2014

शनिदेव से क्यों कुपित हुआ रावण तथा हनुमान जी को उनकी रक्षा के लिए क्यों पहल करनी पड़ी

शनिवार का दिन कई प्रकार से खास होता है. शनि ‘शन (shun)’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘उपेक्षित’ या ‘ध्यान से हटना’. ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को मारक माना जाता है. शनिदेव इसके स्वामी हैं जो इंसान के बुरे कर्मों के अनुसार उन्हें दंडित करते हैं. इसलिए शनिवार के दिन विशेष रूप से शनिदेव की पूजा की जाती है ताकि शनि के कोप से बचा जा सके. पर शनिवार के दिन संकटमोचन हनुमानजी की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है. क्यों? हम बता रहे हैं.

हनुमान और शनि एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं लेकिन बहुत रूपों में समान हैं:

God Shani Dev and Hanumanji

-शास्त्रों के अनुसार शनि की क्रूर दृष्टि हनुमान पर होने के कारण शनिदेव और हनुमान का रंग समान है.

-हनुमान रुद्र (शिव) के अवतार और शनिवार के दिन पैदा हुए माने जाते हैं. इसलिए हनुमान शिव की कृपा भी प्राप्त है.

-शास्त्रों में शनि द्वारा तपस्या कर शिव को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाने का उल्लेख मिलता है.

-हनुमान संकटमोचन, शनिदेव बुरे कर्मों का दंड देने वाले.

-शनिदेव सूर्य-पुत्र हैं और हनुमान सूर्य उपासक (सूर्य के परम भक्त). शनि की अपने अपने पिता सूर्य से नहीं बनती थी. कहते हैं शनि ने सूर्य से युद्ध भी किया जबकि हनुमान पर सूर्य की असीम कृपा मानी जाती है. माना जाता है कि सूर्य ने हनुमान को शक्तियां देकर महावीर हनुमान बनाया.

-शनि का जन्म अग्नि (आग) से हुआ है जबकि हनुमान का जन्म पवन (हवा) से.

-शनिवार के तेल बेचना अशुभ जबकि हनुमान जी को तेल चढ़ाना शुभ माना जाता है.

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-शिव की उपासना करने वाले शनि के कोप से हमेशा बचे रहते हैं, हनुमान के भक्तों पर भी शनि की कुदृष्टि कभी नहीं पड़ती. इसके पीछे एक धार्मिक पौराणिक कथा है. रावण एक बहुत बड़ा ज्योतिषी भी था. एक बार सभी देवों को हराकर उसने सभी नौ ग्रहों को अपने अधिकार में लिया लिया. सभी ग्रहों को जमीन पर मुंह के बल लिटाकर ग्रहों को वह अपने पैरों के नीचे रखता था. उसका पुत्र पैदा होने के समय सभी ग्रहों को उसने शुभ स्थिति में रख दिया. देवताओं को डर भी था कि इस प्रकार रावण का पुत्र इंद्रजीत अजेय हो जाएगा लेकिन ग्रह भी रावण के पैरों के नीचे दबे होने के कारण कुछ नहीं कर सकते थे.

Story of God Shani Dev and Hanumanji

शनि अपनी दृष्टि से रावण की शुभ स्थति को खराब कर सकने में सक्षम थे पर जमीन के बल होने के कारण वह कुछ नहीं कर सकते थे. तब नारद मुनि लंका आए और ग्रहों को जीतने के लिए रावण की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा अपनी इस जीत को इन ग्रहों को उन्हें दिखाना चाहिए जो कि जमीन के बल लेटे होने के कारण वे नहीं देख सकते थे. रावण ने नारद की बात मान ली और ग्रहों का मुंह आसमान की ओर कर दिया. तब शनि ने अपनी मारक दृष्टि से रावण की दशा खराब कर दी. रावण को बात समझ आई और उसने शनि को कारागृह में डाल दिया और वह भाग न सकें इसलिए जेल के द्वार पर इस प्रकार शिवलिंग लगा दी कि उस पर पांव रखे बिना शनिदेव भाग न सकें. तब हनुमान ने लंका आकर शनिदेव को अपने सिर पर बिठाकर मुक्त कराया.

शनि के सिर पर बैठने से हनुमान कई बुरे चक्रों में पड़ सकते थे यह जानकर उन्होंने ऐसा किया. तब शनि ने प्रसन्न होकर हनुमान को अपने मारक कोप से हमेशा मुक्त रहने का आशीर्वाद दिया और एक वर मांगने को कहा. हनुमान ने अपने भक्तों को हमेशा शनि के कोप से मुक्त रहने का आशीर्वाद मांगा. इसलिए कहते हैं कि जो भी हनुमान की उपासना करता है उस पर शनि की दृष्टि कभी नहीं पड़ती.

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