Wednesday 31 July 2013

Rana Village(Ye Daulat Bhi Le Lo, Ye ShoHrat Bhi Le Lo)

Ye Daulat Bhi Le Lo, Ye ShoHrat Bhi Le Lo
Bhale Cheen Lo MuJhse Meri Jawaani
Magar MuJhko Lauta Do Bachchpan Ka Saawan
Wo Kaagaz Ki Kasthi Wo Baarish Ka Paani

Mohalle Ki Sabse Nishaani Purani
Wo BuDhiya Jise Bachche Kehte The Naani
Wo Naani Kee BaatoN Mein PariYoN Ka DeRa
Wo Chehre Ke JhuriYoN MeiN SadiYoN Ka Phera
BhulaaYe NahiN Bhool Saqta Hai Koi
Wo Choti See RaateN Wo Lambi KahaaNi

KaDi DhooP MeiN Apne Ghar Se Nikalna
Wo ChiDiya Wo Bulbul Wo Thithli PakaDna
Wo GuDiya Ki Shaadi Pe LaDna JHagaDna
Wo JhooloN Se Girna, Wo GiR Ke SambhalNa
Wo Pithal Ke ChalloN Ke Pyaare Se Tho'fe
Wo TuTi Hui ChudiYoN Ki Nishaani

Kabhi Re't Ke OoNche Tilon Pe Jaana
GharOnde Banana, Banaake MiTaana
Wo Maasoom Chaahat Ki Tasveer Apni
Wo KhwaboN KhiloNo Ki Taabir Jaageer Apni
Na DuniYa Ka Gham Tha Na RishtoN Ke Bandhan
BaDi Khoobsoorat Thi Wo Zindgaani




Rana Village bakhali list
Nakura  bakhali ,Daaga bakhali, Dhurimahaw , Bechay bakhali, Controla bakhali, Padhan bakhali
Khawadhari, Kuldhar bakhali, Rayal bakhali, ,Garpar, Goldhyan, Raadbagad ,Dyapta bakhali, Koda
Mushdadhar bakhali, Dhudidhar bakhali,

Rana Village Nearest Village
Kahali village , kanday village, suraikhet ,betholi village Ganoli village

Gawad, kotilla village kue village, mainoli village, bethuli village, kauda village,walna village , mushnao village , khargeti village
















स्याल्दे - बिखौती का मेला





अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट कस्बे में सम्पन्न होने वाला स्याल्दे बिखौती का प्रसिद्ध मेला प्रतिवर्ष वैशाख माह में सम्पन्न होता है हिन्दू नव संवत्सर की शुरुआत ही के साथ इस मेले की भी शुरुआत होती है जो चैत्र मास की अन्तिम तिथि से शुरु होता है यह मेला द्वाराहाट से आठ कि.मी. दूर प्रसिद्ध शिव मंदिर विभाण्डेश्वर में लगता है मेला दो भागों में लगता है पहला चैत्र मास की अन्तिम तिथि को विभाण्डेश्वर मंदिर में तथा दूसरा वैशाख माह की पहली तिथि को द्वाराहाट बाजार में मेले की तैयारियाँ गाँव-गाँव में एक महीने पहले से शुरु हो जाती हैं चैत्र की फूलदेई संक्रान्ति से मेले के लिए वातावरण तैयार होना शुरु होता है गाँव के प्रधान के घर में झोड़ों का गायन प्रारम्भ हो जाता है


चैत्र मास की अन्तिम रात्रि को विभाण्डेश्वर में इस क्षेत्र के तीन धड़ों या आलों के लोग एकत्र होते हैं विभिन्न गाँवों के लोग अपने-अपने ध्वज सहित इनमें रास्ते में मिलते जाते हैं मार्ग परम्परागत रुप से निश्चित है घुप्प अंधेरी रात में ऊँची-ऊँची पर्वतमालाओं से मशालों के सहारे स्थानीय नर्तकों की टोलियाँ बढ़ती आती है इस मेले में भाग लेने स्नान करने के बाद पहले से निर्धारित स्थान पर नर्तकों की टोलियाँ इस मेले को सजीव करने के लिए जुट जाती है

विषुवत् संक्रान्ति ही बिखौती नाम से जानी जाती है इस दिन स्नान का विशेष महत्व है मान्यता है कि जो उत्तरायणी पर नहीं नहा सकते, कुम्भ स्नान के लिए नहीं जा सकते उनके लिए इस दिन स्नान करने से विषों का प्रकोप नहीं रहता अल्मोड़ा जनपद के पाली पछाऊँ क्षेत्र का यह एक प्रसिद्ध मेला है, इस क्षेत्र के लोग मेले में विशेष रुप से भाग लेते हैं

इस मेले की परम्परा कितनी पुरानी है इसका निश्चित पता नहीं है बताया जाता है कि शीतला देवी के मंदिर में प्राचीन समय से ही ग्रामवासी आते थे तथा देवी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद अपने-अपने गाँवों को लौट जाया करते थे लेकिन एक बार किसी कारण दो दलों में खूनी युद्ध हो गया हारे हुए दल के सरदार का सिर खड्ग से काट कर जिस स्थान पर गाड़ा गया वहाँ एक पत्थर रखकर स्मृति चिन्ह बना दिया गया इसी पत्थर को ओड़ा कहा जाता है यह पत्थर द्वारहाट चौक में रखा आज भी देखा जा सकता है अब यह परम्परा बन गयी है कि इस ओड़े पर चोट मार कर ही आगे बढ़ा जा सकता है इस परम्परा को 'ओड़ा भेटना' कहा जाता है पहले कभी यह मेला इतना विशाल था के अपने अपने दलों के चिन्ह लिए ग्रामवासियों को ओड़ा भेंटने के लिए दिन-दिन भर इन्तजार करना पड़ता था सभी दल ढोल-नगाड़े और निषाण से सज्जित होकर आते थे तुरही की हुँकार और ढोल पर चोट के साथ हर्षोंल्लास से ही टोलियाँ ओड़ा भेंटने की अदा करती थीं लेकिन बाद में इसमें थोड़ा सुधारकर आल, गरख और नौज्यूला जैसे तीन भागों में सभी गाँवों को अलग-अलग विभाजित कर दिया गया इन दलों के मेले में पहुँचने के क्रम और समय भी पूर्व निर्धारित होते हैं स्याल्दे बिखौती के दिन इन धड़ों की सजधज अलग ही होती है हर दल अपने-अपने परम्परागत तरीके से आता है और रस्मों को पूरा करता है आल नामक घड़े में तल्ली-मल्ली मिरई, विजयपुर, पिनौली, तल्ली मल्लू किराली के कुल : गाँ है इनका मुखिया मिरई गाँव का थौकदार हुआ करता है गरख नामक घड़े में सलना, बसेरा, असगौली, सिमलगाँव, बेदूली, पैठानी, कोटिला, गवाड़ तथा बूँगा आदि लगभग चालीस गाँव सम्मिलित हैं इनका मुखिया सलना गाँव का थोकदार हुआ करता है नौज्यूला नामक तीसरा घड़ छतीना, बिदरपुर, बमनपुरु, सलालखोला, कौंला, इड़ा, बिठौली, कांडे, किरौलफाट आदि गाँव हैं इनका मुखिया द्वाराघट का होता है मेले का पहला दिन बाट्पुजे - मार्ग की पूजा या नानस्याल्दे कहा जाता है बाट्पुजे का काम प्रतिवर्ष नौज्यूला वाले ही करते हैं वे ही देवी को निमंत्रण भी देते हैं

ओड़ा भेंटने का काम उपराह्म में शुरु होता है गरख-नौज्यूला दल पुराने बाजार में से होकर आता है जबकि आल वाला दल पुराने बाजार के बीच की एक तंग गली से होता हुआ मेले के वांछित स्थान पर पहुँचता है लेकिन इस मेले का पारम्परिक रुप अभी भी मौजूद है लोक नृत्य और लोक संगीत से यह मेला अभी भी सजा संवरा है मेले में भगनौले जैसे लोकगीत भी अजब समां बाँध देते हैं बाजार में ओड़ा भेंटने की को देखने और स्थानीय नृत्य को देखने अब पर्यटक भी दूर-दूर से आने लगे हैं इसके बाद ही मेले का समापन होता है  

कभी यह मेला व्यापार की दृष्टि से भी समृद्ध था परन्तु पहाड़ में सड़कों का जाल बिछने से व्यापारिक स्वरुप समाप्त प्राय: है मेले में जलेबी का रसास्वादन करना भी एक परम्परा जैसी बन गयी है मेले के दिन द्वाराहाट बाजार जलेबी से भरा रहता है

इस मेले की प्रमुख विशेषता है कि पहाड़ के अन्य मेलों की तरह इस मेले से सांस्कृतिक तत्व गायब नहीं होने लगे हैं पारम्परिक मूल्यों का निरन्तर ह्रास के बावजूद यह मेला आज भी किसी तरह से अपनी गरिमा बनाये हुए है

                                                             Syalde Mela